गांव की यादें

अपना गांव*

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जब देश पराया छोडकर

अपने मन को मोड़कर

खुद की खुशियों का गला घोटकर 

अपना गांँव को छोडकर

गांँव बहुत याद आता है मांँ

वो निमिया का पेड़ वो मड़ई का छाजन।

वो भूसे का बिस्तर का वो मिट्टी का आंँगन।

बहुत याद आता है मांँ बहुत तड़पाता है मांँ।


वो खंभों वाली मंदिर वो तुलसी मांँ की मंदिर।

बहुत याद आता है मांँ बहुत मन को तड़पता है मांँ।

यहांँ के बर्तन मुझे न सुहाए है

मिट्टी वाली कुल्हड़ की सुगंध ना आए।


वो पोखरे वाली मिठास मुझे प्यारी लगे है।

यह स्वमिंग पुल हमे बडा भारी लगे है।

मांँ यहाँ के हवा में भी मिलावट लगे हैं।

मुझे बुलाओ लो मांँ यह घबराहट लगे है।


वहांँ वो मस्जिद के अजान से हमार नींद खुलत है।

यहाँ एलार्म लगाना हमे ठीक न लगत है।

मांँ यहांँ न हमे कुछ ठीक लगत है।

जल्दी बुलाओ लो मांँ हमार मन ना लगत है।


वहा दद्दा के छाछ से दिन ढलत है

यहांँ दिन रात में हमें कोल्डड्रिंक मिलत है।

मांँ तेरी हाथ की सोंधी रोटी की यहाँ स्वाद ना आए है

भले यहांँ होटल की महंगी वो रोटी जो आए है


मांँ यहाँ जो फूहड़ गीत बजत है।

हमको सुनत बहुत शर्म लगत है।

बहुत अच्छा हमे आपन गांँव लगत है।

ई शहर के नौकरी में न हमार मन लगत है।

मांँ वहाँ रेलगाड़ी की सीटी हमे आगे बढ़ने को बोलत ।

यह तो सब व्यक्ति अपने में खोवत।


वहांँ की कच्ची पगडंडी हमे बहुत सोहावे ।

शहर का पक्का सड़क हमे न भावे।

वहाँ झरना निमिया के पेड़ कोयल जैसे सब याद आवे है

मुझे अपना देश छोड़‌ पराया देश ना भावे है

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राजेश बनारसी बाबू

उत्तर प्रदेश वाराणसी

स्वर




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11 Comments

Bahut khoob 💐🙏

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Gunjan Kamal

14-Nov-2022 08:23 PM

बहुत सुंदर

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शुक्रिया जी

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Shirley Roy

14-Nov-2022 07:02 PM

बहुत खूब

Reply

शुक्रिया जी

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